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:१३: रात्रिभोजन-त्याग की शपथ
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विजयपुर नरेश महीधर से श्रीराम ने जाने की इच्छा व्यक्त की। राजा के वहुत आग्रह पर भी राम वहाँ रुकने को तैयार न हए तो उसने स्वीकृति दे दी।
लक्ष्मणजी ने भी जाकर वनमाला को अपनी इच्छा वताई तो उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई। रोते-रोते वोली
---मुझे आपने मरने से बचाया ही क्यों ? -यह तो मेरा कर्तव्य था और आत्महत्या पाप भी तो है ?
-पाप है या पुण्य, मैं नहीं जानती। मुझे तो इतना मालूम है कि आपके विना मैं नहीं रह सकती। आपका वियोग मेरे लिए असह्य है।
-वियोग है कहाँ ? वनवास से लौटते समय तो मैं तुम्हें साथ ले ही जाऊँगा। __--और इससे पहले ही यमराज मुझे ले जायेगा । -वनमाला ने कहा।
इन शब्दों से लक्ष्मण विह्वल हो गये। एक ओर भातृसेवा का का पवित्र व्रत का और दूसरी ओर वनमाला का हठ । यदि वनमाला की बात मानते हैं तो पवित्र व्रत भंग होता है और भाई के साथ जाते