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रामपुरी में चार मास | २२५
पूर्वी द्वार पर गये और नवकार मन्त्र का उच्च स्वर से जाप करते हुए सहजता से रामपुरी' में प्रवेश कर गये ।
राजमहल में प्रवेश करते ही कपिल की दृष्टि लक्ष्मण पर पड़ी । वह भयभीत होकर लौटने का विचार करने लगा । कपिल का भय लक्ष्मण से छिपा न रहा । उन्होंने मधुर स्वर में कहा
- ब्राह्मण ! भय मत करो । यदि तुम धन की इच्छा से आये हो तो निस्संकोच अन्दर जाकर प्रभु राम से माँग लो ।
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लक्ष्मण के मधुर वचनों से आश्वस्त होकर कपिल श्रीराम के पास पहुँचा और ब्राह्मण होने के नाते उन्हें आशीर्वाद दिया । राम उसकी ओर निहारते रहे फिर वोले
- द्विजोत्तम ! आप कहाँ से पधार रहे हैं ?
कपिल ने उत्तर दिया
- मैं अरुण ग्राम का निवासी कपिल ब्राह्मण हूँ । एक वार आप तीनों मेरे अतिथि वने थे । इस समय मैंने आप लोगों के प्रति दुर्वचन भी कहे थे । तव आप ही ने तो मुझे अपने अनुज से छुड़ाया था ।
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श्रीराम को उस घटना की स्मृति थी किन्तु महान पुरुष अपने उपकारों और दूसरे के अपकारों को हृदय में स्थान नहीं देते हैं। उन्होंने बड़े प्रेम से कपिल को आदरपूर्वक उचित स्थान पर विठाया ।
ब्राह्मणी सुशर्मा ने भी सीताजी को आशीप दी ।
१ गोकर्ण यक्ष ने क्योंकि नगरी की रचना राम, लक्ष्मण, सीता के निमित्त की थी । इसलिए उसने नगरी का नाम रामपुरी रखा था ।