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रामपुरी में चार मास | २१६ - -सुन्दरी ! हम तुम्हारे पिता को बन्धनमुक्त कराने का वचन देते हैं किन्तु जब तक तुम्हारे पिता वापिस न लौटें तुम पुरुषवेश में ही राज्य-संचालन करो।
-बड़ी कृपा ! -कहकर कल्याणमाला ने पुनः पुरुपवेश धारण कर लिया।
सुवुद्धि मन्त्री ने राम से निवेदन किया
-दशरथनन्दन ! कल्याणमाला का सम्बन्ध अनुज लक्ष्मण के साथ स्वीकार कर लीजिए।
-अभी तो हम लोग देशान्तर जा रहे हैं। वापिस लौटते समय लक्ष्मण इसके साथ विवाह कर लेगा। - राम ने वचन दे दिया। सन्तुष्ट होकर कल्याणमाला और सुबुद्धि मन्त्री वापिस चले गये। x
. x राम तीन दिन तक तो वहाँ रहे और उसके बाद आगे चल दिये। नर्मदा नदी को पार करके विन्ध्याटवी में प्रवेश करने लगे। उस समय अनेक लोगों ने उनसे मना किया किन्तु उनकी बातों पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया।
विन्ध्याटवी में प्रवेश करते समय अनेक शुभ और अशुभ शकुन हुए किन्तु राम के हृदय में न हर्ष हुआ, न खेद । शुभाशुभ शकुन की मान्यता दुर्बल हृदय व्यक्ति करते हैं, पराक्रमी नहीं। आगे चलकर उन्हें म्लेच्छ देश का अधिपति काक मिला। काक सीता को देखकर काम विह्वल हो गया और अपने सैनिकों से बोला
-इन दोनों पथिकों को मारकर इस सुन्दरी को मेरी सेवा में पेश करो।
महाभुज लक्ष्मण इन शब्दों को कैसे सुन सकते थे? उन्होंने अग्रज से कहा