SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४ | जैन कथामाला (राम-कथा) ___ लक्ष्मण के शब्द सिंहोदर को बुरे लगे। वह सिंह के समान गर्ज कर बोला. -कौन होता है दशरथ का पुत्र मुझे आज्ञा देने वाला? वज्रकर्ण मेरे अधीन सामन्तं है और मुझे ही नमस्कार नहीं करता। मैं उसे उसके छल का फल चखाकर ही रहूँगा। -यह उसका छल नहीं , धर्म-पालन है और धर्म का विरोध करना अपना ही नाश करना है। --लक्ष्मण ने समझाने का प्रयास किया। -नाश तो मेरे हाथ से वज्रकर्ण का होगा । परन्तु तुम क्यों बीच में टाँग अड़ा रहे हों ? चुपचाप चले जाओ वरना मक्खी की तरह मसल दिये जाओगे। सिंहोदर के इन शब्दों ने लक्ष्मण का कोप भड़का दिया। भ्रकुटी पर बल पड़ गये। क्रोधित स्वर में उन्होंने ललकारा- . ___-वहुत घमण्ड है, अपने बल का? सिंहोदर ! अपनी सेवा सहित युद्ध के लिए तैयार हो। . क्षत्रिय तो सिंहोदर भी था। ललकार सुनकर चुप कैसे रह जाता । सेना को तैयार करके युद्ध में प्रवृत्त हो गया। ___ लक्ष्मण निहत्थे थे। उन्होंने हाथी को वाँधने का कीला कमलनाल. की भाँति उखाड़ लिया और उसी से प्रहार करने लगे। पराक्रमी पुरुषों की संगति से व्यर्थ भी समर्थ हो जाते हैं। लक्ष्मण के हाथ में आते ही कीला भी भयंकर अस्त्र बन गया। पराक्रमी लक्ष्मण की . . विकट मार से सेना विह्वल हो गई। महाभुज लक्ष्मण उछलकर हाथी पर जा चढ़े और सिंहोदर को उसी के वस्त्र से बाँध लिया। राजा के बन्धन में पड़ते ही सेना शान्त हो गई। दशांगपुर के निवासी लक्ष्मण के पराक्रम को देखकर आश्चर्यचकित रह गये।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy