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राम वन-गमन | २०७. हो जाय फिर आप भरत का राज्यतिलक करके उन्हें शासन-संचालन का आदेश दे दें।........ ...............
राम को सीता की यह युक्ति पसन्द आई। उन्होंने इसी प्रकार भरतः का जल से अभिषेक करके शासन-संचालन का आदेश दे दिया। ...
सीता की इस युक्ति से सभी निरुत्तर हो गये। सामन्तों की साक्षी. में भरत का अभिषेक हो चुका था और उन्हें शासन-संचालन का आदेश मिल चुका था। .. अनुज भरत ने अग्रज राम का आदेश शिरोधार्य तो किया किन्तु साथ ही साथ उन्होंने निर्णयात्मक स्वर में कह दिया-- - -तात ! यह अनुज भरत अपने बड़े भाई राम की आज्ञा का... पालन मात्र कर रहा है। यदि आप अपने वचन का पालन करने को कटिबद्ध हैं तो मैं भी राज्य-सिंहासन पर न बैठने का अपना वचन पालन करूंगा। मैं अयोध्या के राज्य का रक्षकमात्र हैं, स्वामी नहीं। इस अभिषेक का मेरे हृदय में कोई मूल्य नहीं है, मूल्य है तो आपकी आज्ञा का। '.. ... राम ने अनुज को आश्वस्त किया-.
-वन्धु ! तुम अपना कर्तव्य पालन करो। मैं जानता हूँ कि तुम्हारे हृदय में राजा बनने की लेशमात्र भी अभिलाषा नहीं है । अयोध्या के रक्षक वनकर ही सही, तुम शासन का संचालन तो करो । यदि तुम्हारे हृदय में इस राज्याभिषेक का कोई मूल्य नहीं तो मैं कब स्वयं को राजा मानता हूँ। भरत ! राजा होता ही कौन है ? सच्चा राजा तो प्रजा का सेवक होता है । दूसरे भले ही उसे राजा, महाराजा, सम्राट आदि कुछ भी उपाधियाँ दें, वह तो स्वयं को प्रजा सेवक ही समझता है। हमारी कुल-परम्परा से चली आई इसी मर्यादा का पालन तुम भी करो।