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१८६ | जैन कथामाला (राम-कथा)
धारी साधु को देखकर वह भयभीत होकर 'अरी मैया री' कहकर अन्दर के कक्ष में भाग गई ।
राजकुमारी का भयभीत स्वर सुनकर दासियाँ दोड़ी आई और नारदजी को पकड़ लिया। बड़ी कठिनाई से देवर्षि ने उनसे पीछा छुड़ाया और पक्षी के समान आकाश में उड़कर वैताढ्यगिरि जा पहुँचे ।
नारदजी का अपमान तो हो ही चुका था, अव वे उसका बदला लेने का उपाय सोचने लगे । उन्होंने कल्पना से ही सीता का एक चित्र बनाया और रथनूपुर के राजकुमार भामण्डल को जा दिखाया । सीता के चित्रपट को देखकर भामण्डल मोहित हो गया । अनंगपीड़ा के कारण वह खाना, पीना, सोना सब भूल गया ।
पिता चन्द्रगति ने पुत्र की यह दशा देखी तो चिन्तित होकर पूछने लगा
- वत्स ! तुम्हें क्या कष्ट है ?
लज्जाशील कुमार भामण्डल मुख नीचा किये बैठा रहा । अधिक आग्रह पर उसने कहा — गुरुजनों के सम्मुख मैं अपने कष्ट का कारण प्रकट नहीं कर सकता ।
विवेकी पिता को दुःख का आभास हो गया । उसने कुमार के मित्रों के माध्यम से पता लगवाया तो उन्होंने चित्रपट चन्द्रगति के
समक्ष रखकर बताया
- यही है कुमार का कष्ट ।
- किस सुन्दरी का चित्र है यह ?
-ज्ञात नहीं ।
- कौन लाया ?
- देवपि नारद ।
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