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सीता स्वयंवर | १८५ लिए उनके सामने स्वयं आतरंगतम आया । म्लेच्छों की सेना राम की सेना पर भारी पड़ रही थी । म्लेच्छराज के पुत्रों ने अकेले राम को घेर लिया। वे समझ रहे थे कि राम को मार लेंगे।
राम ने शर-संधान किया और उनकी प्रथम वाण-वर्षा ने ही कोटि-कोटि म्लेच्छों को वींध दिया । कापुरुषों की भाँति म्लेच्छ प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भाग गये । सम्पूर्ण उपद्रवग्रस्त क्षेत्र शान्ति क्षेत्र बन गया। जनक राम के शरलाघव को देखकर मुग्ध हो गये। राजमहल में आकर उन्होंने अपनी रानी विदेहा को राम का पराक्रम सुनाया और रानी की सहमति से सीता का वाक्दान (सगाई) राम के साथ कर दिया। XX
देवर्षि नारद का एक ही काम है-जगत का परिभ्रमण करते रहना । एक वार वे सीता के निजी कक्ष में जा पहुँचे । सामने एक कोपीनधारी, पीतमुख और नेत्र, खड़ी शिखा वाले एवं हाथ में दण्ड
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उन्होंने दक्ष प्रजापति के यज्ञ-विध्वंस के समय प्रयोग किया था तथा इसी से त्रिपुरासुर का वध किया था और सीता जनक को यज्ञ के लिए भूमि
शोधन करते समय हल की नोक लगने से पृथ्वी से प्राप्त हुई थी। इसी • कारण सीता को अयोनिजा भी कहा गया है।)
परशुराम का पुण्यहरण करते हुए राम अपने अनुज लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ राजा दशरथ तथा अन्य भाइयों सहित अयोध्या लौट आये।
-वालकाण्ड यही सब तुलसी के रामचरितमानस में है।
केवल इतना ही अन्तर है कि वाल्मीकि रामायण में परशुराम से भेंट अयोध्या लौटते हुए वन में होती है और तुलसीकृत में धनुभंग होते ही स्वयंवर मण्डप में।
-तुलसी रचित मानस, बालकाण्ड, दोहा २०६-३६०