SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ | जैन कथामाला (राम-कथा) राजा चन्द्रगति उस समय गवाक्ष में बैठा था। उसके मन में कुतूहल उत्पन्न हुआ-उद्यान में यह कांति कैसी ? उत्सुकता शान्ति हेतु वह उद्यान में गया और तेजस्वी बालक को उठा लाया। अपनी रानी को देते हुए बोला -लो प्रिये ! तुम पुत्र-प्राप्ति के लिए तरस रही थी। रानी ने आश्चर्यचकित होकर देखा-एक वालक पति के अंक में हाथ पैर चला रहा है। प्रसन्न होकर उसने वालक ले लिया और प्यार करने लगी। . . नारी हृदय शंकालु होता है । पुष्पवती के हृदय में भी अचानक सन्देह की लकीर खिंच गई। उसने पति से पूछा -कौन है, यह ? -वालक है और कौन है। -कहाँ से ले आए आप इसे? . -वाहर नन्दन उद्यान में पड़ा था। मैं उठा लाया ? -इसका कुलशील क्या है ? ----मुझे कुछ नहीं मालूम । पति की आँखों में आँखें डालते हुए अन्तिम प्रश्न किया-किसका पुत्र है, यह ? ' -~-अपना पुत्र ही समझो। -पति के मुख से अनायास ही निकल गया। -तो आप ही इसके पिता है ? इसकी माता का क्या किया आपने ? -पत्नी ने पति को पूरा। चन्द्रगति-सहम गया। कहने लगा -देवि ! मुझ पर आरोप मत लगाओ। विश्वास करो, यह शिशु मेरा पुत्र नहीं है । तुम्हारे अतिरिक्त किसी भी स्त्री से मेरा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy