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________________ : ६ : सीता जन्म : भामण्डल -हरण जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में दारु नाम का एक ग्राम था । उस ग्राम में निवास करता था वसुभूति नाम का एक श्रेष्ठ ब्राह्मण | उसकी पत्नी अनुकोशा से एक पुत्र हुआ अतिभूति । अतिभूति का विवाह हुआ सरसा नाम की सुन्दरी से । सुन्दरता ही लोगों को आकर्षित कर लेती है और यदि सुन्दरी सरस भी हो तो लोभी भँवरे उसके चारों ओर मंडराने लगते हैं । सरसा भी सरस थी । एक वार कयान नाम का ब्राह्मण उसे ले हर गया । अतिभूति भूत के समान पत्नी को खोजने लगा । वसुभूति और अनुकोशा ने भी पुत्रवधू को बहुत ढूँढ़ा किन्तु सरसा न मिलनी थी, न मिली । अनुशा और वसुभूति को दैवयोग से एक मुनि दिखाई दे गये । दोनों ने भक्तिपूर्वक उनकी वन्दना की । मुनिश्री से धर्मश्रवण करके दोनों ने व्रत स्वीकार कर लिए। गुरु आज्ञा धारण करके अनुकोशा कमलश्री आर्या के पास रहने लगी। व्रत पालन करते हुए दोनों ने कालधर्म प्राप्त किया और सौधर्म देवलोक में देव पर्याय पाई । सरसा ने भी किसी साध्वी के पास दीक्षा ग्रहण की और संयम पूर्वक मरण करके ईशान देवलोक में देव हुई । किन्तु अतिभूति सरसा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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