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१५४ जैन कथामाला (राम-कथा)
-किस कारण आना हुआ ?
-मेरे स्वामी का आदेश है कि आप उनकी आजा माने। -दूत ने अपने स्वामी की इच्छा बताई। सिंहरथ की भ्रकुटी टेढ़ी हो गई। उसने कर्कश स्वर में कहा
-तुम्हारा स्वामी पागल है, क्या ? व्यर्थ ही युद्ध को निमन्त्रण दे रहा है। मैं उसकी आना क्यों मान ?
- युद्ध को निमन्त्रण तो आप दे रहे हैं। उनकी आज्ञा न मानने का परिणाम युद्ध ही होगा 1
-तो हम भी तैयार हैं। दूत ने सिंहरथ को प्रणाम किया और 'जैसी आपकी इच्छा, राजन्' कहकर चला गया।
उसने सोदास से जाकर यथार्थ वात कह दी। सौदास सिंहरथ पर और सिंहरथ सोदास पर आक्रमण करने चल दिये। मार्ग में दोनों सेनाएँ आमने-सामने आ गई। वहीं युद्ध हुआ और सिंहरथ हार गया।
पिता सोदास ने पुत्र सिंहरथ का हाथ पकड़ा और महापुर तथा अयोध्या दोनों का स्वामी बनाकर स्वयं प्रवजित हो गया।
सिंहरथ का पुत्र ब्रह्मरथ हुआ। उसके पश्चात् चतुर्मुख, हेमरथ, शतरथ, उदयपृथु, वारिरथ, इन्दुरथ, आदित्यरथ, मांधाता, वीरसेन, प्रतिमन्यु, पनवन्धु, रविमन्यु, वसन्ततिलक, कुवेरदत्त, कुंथु, शरभ, द्विरद, सिंहदशन, हिरण्यकशिपु, पुंजस्थल, काकुस्थल और रघु इत्यादि अनेक राजा हुए। इनमें से कुछ तो स्वर्ग गये और कुछ मोक्ष।
वहुत काल वीतने पर इसी वंश में अनेक गुणों से युक्त राजा अनरण्य अयोध्या का स्वामी हुआ। उसके दो पुत्र हुए अनन्तरथ और दशरथ ।
त्रिषष्टि शलाका ७४
अयोध्या राय का पुत्र बदरण, इन्दुस्थ, मालक, कुबेराल और हर