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क्षमावीर सुकोशल | १४१
राजा सुकोशल ने धात्री माता से कहा- मुझे पूरी बात बताओ, वे मुनि कौन थे और माता के हृदय में क्या शंका थी ?
धात्र ने वताया
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- महाराज ! जब आप बालक ही थे तो आपके पिता राज्यभार आपके कंधों पर डालकर प्रव्रजित हो गये थे। आज वे ही विचरते हुए इस नगरी में भिक्षार्थ आ निकले । आपकी माता को शंका हुई कि कहीं उनके सम्पर्क से आप भी दीक्षित न हो जायँ । इसीलिए उन्होंने मुनिश्री को नगर से बाहर निकलवा दिया ।
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धात्री माता की बात सुनकर सुकोशल का मन भी संसार से उदासीन हो गया । स्वार्थ की इस विकट लीला को देखकर वैराग्य जाग गया और वह पिता मुनिश्री के चरणों में पहुँचा । अंजलि जोड़कर वोला
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- गुरुदेव ! मुझे प्रव्रजित कर लीजिए ।
मुनि कीर्तिधर ने सुकोशल की दृढ़ भावना को देखा और उन्हें श्रमणधर्म का उपदेश देने लगे । तब तक राज्य के मन्त्री आदि अधिकारी भी वहाँ आ गये और गुरुदेव को नमन-वन्दन करके राजा सुकोशल से विनय करने लगे
- स्वामी ! आपके प्रव्रजित होने से अयोध्या का सिंहासन रिक्त हो जायगा। राज्य को एक उत्तराधिकारी प्राप्त होने के पश्चात् ही आपका संयम ग्रहण करना उचित है ।
सुकोशल ने उत्तर दिया
— मन्त्रिवर ! रानी चित्रमाला गर्भवती है। उसका पुत्र सिंहासन का अधिकारी हो जायगा । मैं अभी से इसका राज्याभिषेक करता हूँ |
मन्त्रियों ने बहुत आग्रह किया किन्तु राजा सुकोशल नहीं माने