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१४० जैन कथामाला (राम-कथा) सहारा तो छूट ही चुका है यदि पुत्र का भी छूट गया तो........' रानी - की विचारधारा इसी प्रकार चलती रही-'किसी न किसी उपाय से पिता-पुत्र के मिलन को रोकना ही होगा। पिता पुत्र की दृष्टि में ही न पड़े।' __मुनि कीर्तिधर मन्द गति से चले आ रहे थे। उन्हें रानी के मनोभावों का क्या पता? रानी के मस्तिष्क में एक उपाय चमका'इन्हें नगर के बाहर निकलवा दिया जाय ?' विचारधारा ने पुनः पलटा खाया-'किन्तु मुनि तो निर्दोष हैं। उन्होंने कोई अपराध तो किया नहीं तव नगर से बाहर निकालने का कारण ?' स्वार्थ भावना ने वल पकड़ा-'पुत्र वियोग की सम्भावना यथेष्ट कारण है। इन्हें निकलवा देने में ही मेरी भलाई है।'
रानी ने निर्णय कर लिया और तुरन्त उस पर अमल भी। अपने अनुचरों द्वारा उसने मुनिश्री को नगर से बाहर करा दिया। स्वार्थी लोग विवेकान्ध होते हैं, उन्हें भला-बुरा कुछ नहीं दिखाई देता। __मुनिश्री को नगर से बाहर निकालने की बात सुनकर राजा सुकोशल की धात्री माता रोने लगी। राजा ने उससे पूछा
तुम क्यों रो रही हो?
-आपकी माता ने अभी-अभी संयमी 'मुनि को नगर के वाहर निकलवा दिया है।
सुकोशल विस्मित हो गया। उसके मुख से निकला-कारण? - हृदय की शंका । -किसके हृदय में शंका थी ? · . -आपकी माता के हृदय में ।