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:१: साले-बहनोई की दीक्षा
अयोध्या के सम्राटों ने चक्रवर्ती भरत के पुत्र सूर्य के नाम पर अपने को 'सूर्यवंशी' के नाम से प्रख्यापित कर लिया था। __ आदि तीर्थ प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव के पश्चात अनेक राजाओं ने अयोध्या का राज्य भार सम्भाला। उनमें से कुछ तो मोक्ष गये और कुछ स्वर्ग।
बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ में अयोध्या का शासक था राजा विजय । उसकी रानी हिमचूला से दो पुत्र हुए-वज्रबाहु और पुरन्दर।
उस समय नागपुर में राजा ईभवाहन राज्य करता था। उसकी रानी चूड़ामणि से एक पुत्री उत्पन्न हुई मनोरमा । मनोरमा युवती हुई तो उसका विवाह हुआ अयोध्या के राजकुमार वज्रवाहु के साथ । ___मनोरमा को साथ लेकर वज्रवाहु अपने नगर की ओर जाने लगा तो उसका साला (मनोरमा का भाई) उदयसुन्दर भी सम्मान प्रदर्शित करते हुए उसके साथ-साथ चला।
साले (उदयसुन्दर) और बहनोई (वज्रबाहु) दोनों हास-परिहास करते चले जा रहे थे । मार्ग में गुणसुन्दर नाम के मुनि दिखाई पड़े। मुनि आकाश की ओर मुख करके आतापन योग लगा रहे थे।