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१२२ | जैन कथामाला (राम-कथा)
कुमार हनुपुर के राजमहल में क्रीड़ा करता हुआ वढ़ने लगा ।
माता अंजना पुत्र को देखकर तो सुखी थी - निश्चिन्त थी परन्तु अपने माथे पर लगा हुआ कलंक उसके हृदय में रात-दिन शल्य की भाँति खटकता रहता । निर्दोष व्यक्तियों पर जब झूठा कलंक लगाया जाता है तो वे उसे सरलता से नहीं भूल पाते । यही दशा अंजना की थी । वह भी शल्य को हृदय में दवाये हुए समय व्यतीत करने लगी ।
-त्रिषष्टि शलाका ७१३
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