________________
हनुमान का जन्म | ११६ उसने उनका साथ नहीं छोड़ा और उनकी रक्षा करता रहा। अंजना और वसन्ततिलका दोनों तीर्थंकर भगवान की नित्य भक्ति करने लगीं।
गर्भकाल पूरा हुआ। अंजना ने परम तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। वसन्ततिलका ने उसके प्रसूति कार्य किये।
पुत्र का मुख देखकर अंजना विलाप करने लगी
-अरे वत्स ! इस निर्जन वन में दीन हीन मैं तेरा जन्मोत्सव कैसे मनाऊँ ?
उसी समय आकाश मार्ग से विद्याधर प्रतिसूर्य जा रहा था । निर्जन वन की गिरिकन्दरा से स्त्री रुदन का स्वर सुनकर वह नीचे आया और उनसे दुःख का कारण पूछा । वसन्ततिलका ने पूरी कहानी आँखों में आँसू भरकर सुना दी। विद्याधर कहने लगा
-पुत्री ! अब तेरे दुःख के दिन बीत गये । मैं पिता विद्याधर चित्रभानु और माता सुन्दरीमाला का पुत्र प्रतिसूर्य विद्याधर हूँ। हृदयसुन्दरी नाम की तेरी माता का भाई हूँ। मुझे अपना मामा समझ । ___ मामा के आश्वासन से अंजना की रुलाई फूट पड़ी। उसके हृदय का बाँध टूट गया। प्रियजनों से मिलाप होने पर आँखों से गंगाजमुना बहने लगती ही है । बड़ी देर तक विद्याधर उसे धैर्य बँधाता रहा । जब अंजना के आँसू सूख गये और हिचकियाँ वन्द हो गईं तो, मामा प्रतिसूर्य ने कहा
चलो बेटी ! अपने राज्य हनुपुर चलते हैं। वहीं पुत्र का लालन-पालन करेंगे। , विद्याधर अपने विमान में विठाकर अंजना, उसके पुत्र और सखी वसन्ततिलका को ले चला। विमान तीव्र गति से उड़ा जा रहा था और अंजना अपने पुत्र को अंक में लेकर खिला रही थी। शिशु