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११८ | जैन कथामाला (राम-कथा)
तुम्हारी सखी अंजना का वह पुत्र गुणों का भण्डार, महापराक्रमी, विवेकी, विद्याधरों का राजा और चरमदेही होगा।
साधुजी के वचन सुनकर दोनों सखियों के शोक संतप्त हृदय को बड़ी शान्ति मिली । वसन्ततिलका ने पुनः जिज्ञासा प्रकट की___ -भगवन् ! ऐसा पुण्यशाली जीव इसी कंदरा में जन्म लेगा? क्या इसी निर्जन गुफा में वृद्धि पायेगा?
-भद्रे ! पुत्र का जन्म तो इसी कंदरा में होगा किन्तु पालन पोषण होगा मामा के घर। -~-मुनिराज ने बताया और आकाश में पक्षी की भांति उड़ गये। क्योंकि जैन साधु अधिक वातें किसी से नहीं करते और अधिक समय तक एक स्थान पर रुकते भी नहीं।
दोनों सखियाँ उन चारण ऋद्धिधारी मुनि को जाते हुए आकाश में टकटकी लगाकर देख रही थीं। उपकारी मुनि के प्रति उनके हृदय में अत्यधिक श्रद्धाभाव था। . ___ दृष्टि से मुनि के ओझल हो जाने पर उन्होंने आँखें नीची की तो सामने एक विपत्ति खड़ी दिखाई दी। एक केशरी सिंह उनकी ओर टकटकी लगाकर देख रहा था। अचानक आपत्ति से दोनों सखियाँ स्तम्भितं रह गईं। उसी समय उनके और अंजना के गर्भस्थ शिशु के पुण्य-योग से आकर्षित होकर गुफा का अधिपति मणिचूल गन्धर्व उनकी रक्षा को उद्यत हुआ और अष्टापद का रूप बनाकर उस सिंह का प्राणान्त कर दिया। - विपत्ति टलने से दोनों सखियों की जान में जान आई। तभी गन्धर्व मणिचूल अपने असली स्वरूप में प्रगट हुआ और अर्हन्त भगवान की स्तुति गाने लगा।
१ चरमदेही का अभिप्राय है-उसी भव से मोक्ष जाने वाला। यह शरीर .
किसी शस्त्र आदि से छिद-भिद और नष्ट नहीं हो सकता।