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: १२: मित्र का अनुपम त्याग
पवन के समान वेगवान महापराक्रमी दशमुख मरुतराजा के पास से चलकर मथुरा नगरी में आया। मथुरा नरेश हरिवाहन अपने पुत्र के साथ उसके स्वागतार्थ आये । उनके पुत्र मधु के हाथ में त्रिशूल था । आदर-सत्कार से सन्तुष्ट होकर रावण ने उत्सुकतापूर्वक पूछा
-राजन् ! तुम्हारे पुत्र के हाथ में यह त्रिशूल आयुध कहाँ से आया ?
पिता का आज्ञासूचक संकेत पाकर पुत्र मधु मधुर शब्दों में बोला--लंकापति ! यह आयुध मुझे मेरे मित्र चमरेन्द्र ने दिया है। -चमरेन्द्र और तुम्हारा मित्र!-लंकेश विस्मित था।
-इस जन्म का नहीं, पूर्वजन्म का। मधु ने दशानन का विस्मय शान्त करने का प्रयास किया किन्तु लंकेश का विस्मय शान्त नहीं हुआ वरन् और भी बढ़ गया । दशानन ने पूछा
-भद्र ! उचित समझो तो पूरा वृत्तान्त सुनाओ। -यह त्रिशूल देते हुए जो कुछ चमरेन्द्र ने मुझसे कहा था,.