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६६ / जैन कथामाला (राम-कथा) तीनों की समान वय और विद्या प्राप्ति की एकसी लगन देखकर एक मुनि ने दूसरे से जिज्ञासा प्रकट की
-प्रभो! ये तीनों विद्यार्थी समानवय के और सदाचारी हैं। इनका भविष्य क्या होगा? ये कालधर्म प्राप्त कर किस गति में ' जायेंगे ?
दूसरे मुनि ने उत्तर दिया
-आयुष्मान् ! इन तीनों विद्यार्थियों में से एक को तो स्वर्ग और शेष दोनों को नरक गति मिलेगी।
दोनों मुनियों की यह वातचीत गुरु क्षीरकदम्ब ने सुन ली। वे
.. किसी एक दिन वे तीनों (नारद, पर्वत और वसु) ही उपाध्याय (क्षीरकदंब) के साथ वन में डाभ आदि लेने गये । वहाँ आचार्य श्रुतधर अचल नाम की शिला पर विराजमान थे । समीप ही गुरु-चरणों में उनके तीन शिष्य वैठे थे। उन शिष्यों ने गुरु श्रुतधर से अष्टांग निमित्त सुना था। उनकी परीक्षा लेने के लिए आचार्य ने शिष्यों से पूछा-'इन विद्यार्थियों के क्या नाम हैं, इनके परिणाम कैसे हैं, मरकर किस गति में जायेंगे—यह सव बातें अनुक्रम से तुम तीनों ही कहो ।
उन तीनों में से एक मुनि ने बताया-यह जो समीप बैठा है, वह राजा का पुत्र वसु है, तीव्र राग आदि दोपों से दूषित हिंसा रूप धर्म के पक्ष में निर्णय करके नरक को जायगा ।
दूसरे मुनि ने बताया-मध्य में बैठा हुआ विद्यार्थी ब्राह्मण है । इसका नाम पर्वत है। यह दुर्वृद्धि और क्रूर परिणाम वाला है । महाकाल व्यन्तर की प्रेरणा से पाप कर्म का उपदेश देगा। यह अथर्वण नाम के पाप शास्त्र की पढ़ेगा और हिंसक यज्ञों का प्रचार-प्रसार करके रौद्रध्यान में ही लीन रहेगा। परिणामस्वरूप घोर पाप का उपार्जन करके नरकगामी होगा।