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को अनेक मांगलिक वाद्यों के शब्द गोपुर-द्वार पर सुनायी दिये। आगे चलने पर उसे हाट-मार्ग दिखायी पड़ा, जहाँ अनेक पण्य योग्य वस्तुओं को फैलाए हुए क्रय-विक्रय में प्रवृत्त व्यापारियों द्वारा कोलाहल हो रहा था ।369 उस हाट मार्ग में प्रविष्ट होने पर कुवलयचन्द्र को अनेक देशों की भाषाओं एवं लक्षणों से युक्त देशी वणिक दिखायी पड़े |370
नाप-तौल एवं मुद्राः-जैन कथा साहित्य में विभिन्न प्रकार की नाप-तौल की प्रणालियों एवं मुद्राओं का उल्लेख मिलता है। संक्षेप में, ये इस प्रकार हैं।
अंजलि-अंजलि नाम का परिमाण पाणिनि के समय में भी प्रचलित था ।371 चरक के अनुसार सोलह कर्ष या तोले की एक अंजलि होती थी। कौटिल्य ने चार अंजलि के बराबर एक प्रस्थ माना है ।372 वासुदेव शरण अग्रवाल ने ढाई छटाँक के बराबर एक अंजलि का नाप माना है।373
कर्ष-यह एक प्राचीन नाप था। चरक ने इसे लगभग तोले के बराबर माना है । मनुस्मृति में एक कर्ष (80 रत्ती) के ताँबें के कार्षापण को पण कहा गया है।374 पूर्वमध्य कालीन अभिलेखों में भी कर्ष के उल्लेख मिलते हैं 375
कुडत्तं, कूटतौल, कूटमान एवं कूट टंक-कुवलयमाला376 में इन शब्दों का प्रयोग गलत दस्तावेज तैयार करने, कम तौलने एवं खोटे सिक्के चलाने के अर्थ में हुआ है। व्यापरिक मण्डियों में इस प्रकार के अवैध कार्य भी होते थे। कोटि शत कोटि-सिक्के का नाम न कहकर केवल संख्या द्वारा ही वस्तुएँ खरीदी-बेची जाती थीं।377
___ गोणि-चरक ने गोणि को खारी का पर्याय मानते हुए उसकी तौल भी 2 मन 22 सेर 32 तोले बतलायी है |378 गोणी को द्रोणी एवं वाह भी कहा गया है ।379
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