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________________ स्वामिनी देवी ने उसे रोका। हेम कुण्डल की सहायता से वह रत्नद्वीप पहुँचा और वहाँ से रत्न प्राप्त किये ।330 इस प्रकार हरिभद्र के पात्र व्यापार करते हुये दिखलायी पड़ते हैं। धरण ने उत्तरापथ के प्रमुख नगर अचलपुर में चार महीने रहकर “विभाग संपत्तीए य विक्किणियमणेण मण्डं समासाइओ अट्ठगुणो लाभो ।331 अपना माल बेंच कर आठ गुना लाभ कमाया। जहाज द्वारा वाणिज्य के अतिरिक्त स्थल मे बैल गाड़ियों332 द्वारा वाणिज्य सम्पन्न होता था। व्यापार 'चेलादिभण्ड'333 वस्त्र, कपास, सन, अनाज आदि पदार्थो का होता था। हरिभद्र के समय देश की स्थिति अच्छी प्रतीत होती है। धन, धान्य, सुवर्ण, मणि, मौक्तिक, प्रवाल, द्विपद और चतुष्प 34-पालतू पशु आदि सम्पत्ति थी। स्थानीय व्यापार:-स्थानीय व्यापार के मुख्य केन्द्र दो थे:- विपणिमार्ग एवं बन्दरगाह । विपिणमार्गों में दैनिक जीवन में काम आनेवाली वस्तुओं की बिक्री होती थी, जब कि बन्दरगाहों में विभिन्न स्थानों के व्यापारी आकर थोक वस्तुओं की बिक्री करते थे। कुवलयमाला में इन दोनों प्रमुख केन्द्रों का वर्णन उपलब्ध है ।335. विपिणमार्ग में 84 प्रकार की वस्तुओं की दुकानें होती थीं, इन्हे हट्ट कहा जाता था। कुवलयमाला में उल्लिखित विनीता नगरी के विपिणमार्ग में 336 विभिन्न वस्तुओं की दुकाने इस क्रम से थी:- एक ओर कुंकुम, कर्पूर, अगरू मृगनामिवास, पडवास आदि सुगन्धित वस्तुओं की दुकाने थी337 दूसरी ओर की दुकानों में इलायची, लोंग नारियल आदि फलों के ढेर लगे थे। उसके आगे मोती, स्वर्ण-रत्न आदि अलंकारों की दुकानें थीं। निकट ही काले, पीले, श्वेत रंग के नेत्रयुगल वस्त्र के थान दुकान में फैले थे। दूसरी गली में विभिन्न प्रकार के वस्त्रों से दुकाने भरी थीं। उसके आगे किसी गली में सरस औषधियों की दुकानें थी ।338 दूसरी गली में शेख, वलय, कांच, मणि आदि की दुकानें लगी थीं।339 आगे की दुकानों में बाण, धनुष, तलवार, चक्र, भाला, के ढेर लगे थे।40 इसके आगे शंख, चामर, घंटा एवं सिंदूर आदि दुकानें थीं। अगली दुकानों में विविध प्रकार की जड़ी-बूटी तथा अनेक प्रकार के चंदन रख हुये थे। (64)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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