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________________ कुवलयमाला में वाणिज्य एवं व्यापार से सम्बन्धित विविध एवं विस्तृत जानकारी उपलब्ध है जिससे तत्कालीन समाज का आर्थिक स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। समराइच्चकहा में उल्लेख है कि व्यापार के लिये बड़े-बड़े जहाजी बेड़े चलाए जाते थे लोग सिंहल, सुवर्णद्वीप, रत्नद्वीप से धनार्जन कर लौटते थे। धन ने स्वोपार्जित वित्त द्वारा दान करने के लिये, समुद्र व्यापार करने का निर्णय लिया। वह अपनी पत्नी धनश्री और भृत्यनन्द को भी साथ लेकर “नाणापयार मण्डजायं327" अनेक प्रकार का सामान लेकर और जहाज में भरकर अपने साथियों के साथ प्रस्थान किया। मार्ग में उसकी पत्नी धनश्री ने विष उसे दे दिया। अपने जीवन से निराश होकर उसने अपना माल भृत्य नन्द को सौंप दिया। कुछ समय के पश्चात जहाज महाकटाह पहुँचा और भृत्य नन्द सौगात लेकर राजा के समक्ष उपस्थित हुआ। यहाँ भृत्य नन्द ने माल उतरवाया और धन की चिकित्सा का भी प्रबन्ध किया पर उससे कोई लाभ नही हुआ। यहाँ का माल खरीदा गया और जहाज पर लाद कर प्रस्थान किया ।328 पंचम भव की कथा में सनत्कुमार और वसुभूति सार्थवाह समुद्रदत्त के ताम्रलिप्ति से व्यापार के लिये चले। जहाज दो महीने में सुवर्णभूमि पहुँचा। इसके पश्चात् सुवर्ण भूमि से सिंहल के लिए चल दिये। तेरह दिन चलने के बाद एक बड़ा तूफान आया और जहाज पर नियन्त्रण न रहा।329 धरण की कथा से भी भारत, द्वीपान्तर और चीन के बीच जहाज द्वारा व्यापार करने की प्रथा पर पूर्ण प्रकाश पड़ता है। यह वैजयन्ती बन्दरगाह से चलकर सुवर्णद्वीप पहुँचा और यहाँ उसने धातु क्षेत्र समझकर स्वनामांकित दस-दस ईटों के सौ सोने की ईटों के ढेर तैयार किये। इसके बाद उसने अपना पता देने के लिये एक दूसरा पोतध्वज लगा दिया। इसी बीच चीन से साधारण कोटि का सामान लादे हुए सुबदन सार्थवाह का जहाज जा रहा था। उसने नौका भेजकर धरण को अपने जहाज में बैठाया। जहाज के रवाना होते समय स्वर्णद्वीप की (63)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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