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________________ महोत्सव के प्राचीन साहित्य में अन्य सन्दर्भ भी मिलते हैं ।296 दीपावली की धार्मिक पृष्ठभूमि इसके साथ आज भी बनी हुई है। उद्योतन ने दीपावली का उल्लेख एक बार किया है ।297 कौमुदी महोत्सव–समराइच्चकहा में इस उत्सव का उल्लेख है। यह उत्सव सम्भवत: शरद पूर्णिमा को होता था। युवक-युवतियाँ बाग-बगीचों और लतागृहों में जाकर नृत्य-गान का आनन्द लेती थी।298 कुवलयमाला में सागरदत्त की कथा में कौमुदी महोत्सव का वर्णन किया गया है। उद्योतन ने इसे शरद-पूर्णिमा महोत्सव कहा है।299 किन्तु प्राचीन साहित्य में कौमुदी-महोत्सव दीपावली से भिन्न बताया गया है ।200 कुवलय माला के अनुसार इस महोत्सव में नगर के चौराहों पर नटों के नृत्य होते थे ।301 नट मंडली के कुछ चारण आदि व्यक्ति महोत्सव में सम्मिलित श्रेष्ठजनों की स्तुति करते थे तथा रसिक श्रेष्ठिपुत्र एक लाख तक का पुरस्कार इन भरत पुत्रों को देने की घोषणा करते थे ।302 आगे चलकर रानियाँ भी अन्य प्रतिष्ठित महिलाओं के साथ इस उत्सव में सम्मिलित होने लगी थी ।303 मदन महोत्सव:-इस उत्सव का प्रचार प्राचीन भारत में अत्यधिक था ।30+ यह उत्सव चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को प्राय: सम्पन्न किया जाता था। हरिभद्र के वर्णन के अनुसार आम्र मंजरी के आने पर उद्यान रक्षक राजा को मंजरी भेंट करता था। राजा नगर भर में घोषणा कराके नागरिकों को सार्वजनिक उद्यान में उत्सव मनाने का आदेश देता था। सभी वर्ग के व्यक्ति नृत्य गीत के साथ नाटक, अभिनय आदि का आयोजन करते थे। नगर की सड़के सुगन्धित जल से छिड़की जाती थी। केशर और कस्तूरी मिश्रित जल का छिड़काव किया जाता था। विचित्र वेश बनाकर युवकों की टोली नगर की सड़को पर बहुत लोगों से प्रशंसनीय बसंत क्रीड़ा का अनुभव करती हुई विचरण करती थी। उद्यान में पहुँचकर लोग विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएं करते थे। राज परिवार में भवनोद्यान के वृक्षों पर झूले डाले जाते थे और युवतियाँ झूलती थीं। मदन-महोत्सव स्त्री पुरूष दोनों ही सम्पन्न करते थे। कुवलयमाला में इसका विस्तृत वर्णन है। बसंत ऋतु में मदन त्रयोदशी के आने पर पूजनीय, संकल्प-पूर्णकता कामदेव के वाह्य ( 57 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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