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कितने बच्चे होने चाहिये इसका कोई नियम तो निश्चित नहीं है, किन्तु गरूड़ पक्षी के कथानक से ज्ञात होता है कि उसके तीन बच्चे थे-एक कंघे पर बैठा था, दूसरा गले में झूल रहा था एवं तीसरा पीठ पर चढ़ था ।260
माता पिता-संयुक्त परिवार में पति-पत्नी एवं उनकी संतान के साथ पति के माता-पिता भी रहते थे। पुत्र द्वारा युवावस्था में गृह त्याग के कारण माता-पिता अपने आलंबन की चिन्ता करते थे ।261 मानभट के माता-पिता पुत्र को मृत जानकर अनाश्रित हो जाने के कारण स्वयं कुएँ में कूद पड़े।262
उद्योतन सूरि ने निम्न संस्थाओं का उल्लेख किया है:-देवकुल263, मठ264, पाठशाला265, समवसरण266, अग्निहोत्र शाला267, एवं ब्राहमण शाला ।268 देवकुल तत्कालीन स्थापत्य का प्रचलित शब्द है। नगर के विभिन्न स्थानो पर सामूहिक देवकुलों का निर्माण होता था। इनके निर्माण के लिए नगर के श्रेष्ठी दान करते थे-करावेसु देवउले269 इनमें केवल देव अर्चना ही नही होती थी, अपितु भूले भटके पथिक भी इनमे ठहर सकते थे। मठ का उल्लेख उद्योतनसूरि ने दो प्रसंगों मे किया है। कौशाम्वी नगरी में शाम होते ही धार्मिक मठों में गलाफोड़ आवाज होने लगती थी ।270 विजयपुरी के मठ में अनेक देशों के छात्र रहकर अध्ययन करते थे। ये मठ शिक्षा के वड़े केन्द्र होते थे।
सामाजिक-धार्मिक कृत्य जन्मोत्सवः-प्राचीन भारतीय साहित्य में पुत्र-जन्मोत्सव के अनेक सुन्दर वर्णन प्राप्त होते हैं। कुवलयचन्द्र का जन्म होते ही प्रसूतिगृह में अनेक प्रकार के कार्य किये गए। मंगल-दर्पण मालाओं को उतारा गया ।271 पत्रलता द्वारा बालक की रक्षा के लिए सुन्दर सजावट की गयी-मुइ-रक्खा परिहरंतए ।272 परिचारिका सिद्धार्थी द्वारा गोरचना से सिद्ध किया गया ताबीज बनाया गया।273 कालिदास ने इसी को रक्षाकरण्डक कहा है ।274 सुमटी को
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