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________________ वर्णन, पुत्र का परिवार में महत्व, परिवार के भरण-पेषण का उत्तरदायित्व, पति-पत्नी के सम्बन्धों का निर्वाह आदि अनेक पारिवारिक जीवन के प्रसंगों का वर्णन किया है। सांसारिक एवं आध्यात्मिक लक्षयों की पूर्ति में परिवार का महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।247 संयुक्त परिवार-कुवलयमाला में चंडसोम, मानभट एवं गरूड पक्षी की कथाओं के प्रसंग में संयुक्त परिवार का चित्रण हुआ है। चंडसोम अपने माता-पिता, भाई एवं बहिन के साथ रहता था।248 मानभट अपने माता-पिता एवं पत्नी का जीवनाधार था ।249 गरूड़ पक्षी के कथानक द्वारा उद्योतन-सूरि ने उसके परिवार के निम्न सदस्यों का वर्णन किया है, जिनसे वह दीक्षा लेने के लिए अनुमति चाहता है-पिता, माता, ज्येष्ठ भ्राता, अनुज, ज्येष्ट बहिन, छोटी बहिन, पत्नी, संतान, ससुर एवं सासु ।250 पुत्र-पुत्र के बिना समृद्धशाली पुरूष पुष्पों से युक्त फलरहित वृक्ष के समान माना जाता था ।251 पुत्र की इसी महत्ता के कारण पुत्र लाभ प्रसन्नता का कारण था ।252 पुत्र की अचानक मृत्यु पर परिवार के अन्य सदस्य स्वयं को असहाय अनुभव कर अनुमरण कर लेते थे।253 पुत्र पिता के रहते हुए भी अपनी शक्ति के बल पर धन कमाते थे ।254 पिता के बाद परिवार के भरण-पोषण का ध्यान रखते थे।255 पुत्र पिता के उत्तरदायित्व को सम्हाल लेता था 1256 पुत्री-कुवलयमाला की कथा से ज्ञात होता है कि कुवलयमाला के जन्म होने पर पुत्र-जन्म के दिन से ही उत्सव मनाया गया।257 बारहवें दिन नाम संस्कार किया गया और क्रमश: अनेक कलाओं की शिक्षा दी गयी ।258 छोटी-बड़ी बहनें भाई के ऊपर निर्भर रहती थीं।259 चण्डसोम, मोहदत्त आदि की कहानी से ज्ञात होता है कि पुत्रियां भरण-पोषण एवं मनोरंजन आदि कार्यो के लिये अपने परिवार के ऊपर आश्रित थीं। विवाह हो जाने पर यदि पति विदेश गया हो तो पुत्री पिता ही के घर पर रहकर समय व्यतीत करती थी। परिवार में (53)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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