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भी लिखकर भेजे थी। इस हंसपदिका से स्पष्ट ज्ञान होता है कि वह काव्य-रचना की कला को भी जानती थी। पुरुषों के समान सामूहिक रूप से कन्याओं के लिये भी उच्च शिक्षा का प्रबन्ध था। हरिभद्र ने एक स्थान पर लिखा है-“अणहीयसत्थो ईइसो चेव इत्थियायणो होइ"223 ।
हरिभद्र की प्राकृत कथाओं के अवलोकन से प्रतीत होता है कि कन्याओं की शिक्षा में निम्न विषय सम्मिलित थे:
1. लिखना-पढ़ना,
2. शास्त्र ज्ञान,
3. संगीत कला,
4. चित्र कला,
5. गृह-संचालन कला।
पत्नी-पत्नी का शाब्दिक अर्थ गृह स्वामिनी होता है। दम्पति की कल्पना में पति-पत्नी दोनों गृह के संयुक्त और समान रूप से अधिकारी होते हैं। श्वसुर के ऊपर साम्राज्ञी हो, देवर के ऊपर साम्रज्ञी हो224 । यह वैदिक काल का आदर्श हरिभद्र के समय तक चला आ रहा था। घर में बहू की स्थिति का एक स्पष्ट उदाहरण हरिभद्र के उस स्थल पर मिलता है, जब गुण चन्द्र शत्रुराजा को परास्त करने जाता है और वानमन्तर उसकी मृत्यु का मिथ्या समाचार नगर में फैला देता है। वह अपने श्वसुर को बुलाकर अग्नि में प्रविष्ट होना चाहती है, किन्तु ससुर बहू को समझाता हुआ कहता है आप धैर्य रखें। मैं पवनगति से खवाहक को भेज कर युद्धस्थल से कुमार का कुशल समाचार मँगाता हूँ। पाँच दिनों में समाचार आ जायगा। आप समाचार प्राप्त होने पर जैसा चाहें वैसा करें225 ।
सास बहू के बीच मधुर सम्बन्ध होता था। पत्नी पति के बिना एक क्षण भी नहीं रहना चाहती थी। हरिभद्र ने धन की विदेश यात्रा के समय धनश्री के स्पष्ट पूर्ण निवेदन और सास
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