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________________ अध्याय 2 जैन कथा साहित्य की सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि जैन कथा साहित्य में वर्णित धार्मिक जीवन के विश्लेषण करने में, इस साहित्य के सृजन काल के सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश का अध्ययन आवश्यक है। अतएव, इस अध्याय को दो खण्ड़ों में विभाजित किया गया है। खण्ड अ जैन कथां कालीन सामाजिक परिवेश प्रस्तुत करता है जबकि खण्ड ब में आर्थिक स्थिति का वर्णन किया गया है। खण्ड-अ: सामाजिक दशा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ (उसभ) के समय तक का समाज स्वर्गीय-आदर्श (UTOPIAN) अवस्था में था और जन जीवन आनन्दमय था। क्रमश: लोग धर्म के प्रति उदासीन होने लगे जिसके परिणाम-स्वरूप अभाव की स्थिति उत्पन्न हो गई और लोग असामयिक मृत्यु के शिकार होने लगे तथा समाज में अराजकता की स्थित उत्पन्न हो गयी। ऋषभ ने ह्रास की स्थितियों से बचने के लिये, राजनैतिक और सामाजिक प्रतिबन्धों की नीतियों की संहिता का प्रतिपादन किया। इसी के साथ राजशाही, दण्ड चातुर्वर्ण्यव्यवस्था और विवाह की नीतियों का प्रतिपादन किया। इन नीतियों में वैदिक धर्म की वर्णव्यवस्था का प्रतिबिब स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। कालान्तर में, जैन कथाकारों की कृतियों में भी वैदिक कालीन सामाजिक स्तरीकरण पाया जाता है। जैसे वसुदेव हिण्डी के पात्र साम्ब द्वारा धर्म और अर्थ की प्राप्ति के लिए कर्म के संपादन पर भी जोर दिया जाना। हरिभद्र कालीन जैन कथा समराइच्चकहा में आर्य एवं अनार्य ( 25 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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