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42. जो इच्छइ भव-विरहं कोण वंदए सुयणो समय-सय-सत्थ-गुरूणो समर मियंका कहा जस्स ॥-कु, अ. 6,
पृष्ठ 41 43. हर्मन जैकोवी ने भूमिका के साथ इसे एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल, कलकत्ता के सन् 1926 में प्रकाशित किया था। उसके बाद पं. भगवान दास ने संस्कृत छाया के साथ दो भागों में क्रमश: सन् 1938
और 1942 मे इसे अहमदाबाद से प्रकाशित किया है । 14. निदानं विषय भोगाकांक्षा-सर्वा. 7/18, पृ. 234 । 45. ग्रहसेविउं पयत्ता-परितुट्ठाहियएणं-स. 2/81-92 । 46. जैन ग्रंथावलि, पृ. 2671 47. डा. अमृतलाल गोपाणी द्वारा सिंधी जैन ग्रन्थमाला में सन् 1949 में प्रकाशित । 84. सक्कयक व्वस्सत्थं जेण न जाणंति मंदबुद्धीया। सव्वाण वि सुहवोहं तेण इमेंमं पाइयं रइयं ।। गूढत्थ
देसिरहियं सुललियवन्नेहिं गंथियं रम्भं । पाइयकव्वं लोए कस्स न हिययं सुहावेइ ।। 49. इस ग्रन्थ का संपानदन मुनि पुण्यविजय जी द्वारा हुआ है। आत्मानंद जैन ग्रंथमाला मे मुनि पुण्यविजय
जी द्वारा सम्पादित, सन् 1944 मे प्रकाशित । 50. यह जेड. डी. एम. जी (जर्मन प्राच्य विद्या समिति की पत्रिका) के 34 वें खण्ड में 274 वे पृष्ठ, 35 वे खंड
मे 675 तथा 37 वे खण्ड में 493 पृष्ठ से छपा है । कालिकाचार्य-कथासंग्रह अंबालाल प्रेम चन्द्रशाह द्वारा सम्पादित सन् 1949 में अहमदावाद से प्रकाशित हुआ है । इसमें प्राकृत और संस्कृत की कालिकाचार्य के ऊपर भिन्न-भिन्न लेखकों द्वारा लिखी हयी 30 कथाओ का संग्रह है। उमाकान्त शाह. सवर्णभमि में कालकाचार्य; डब्ल्यु नार्मन बाउन, स्टोरी आव कालक; मुनिकल्याण विजय, प्रभावक चरित की प्रस्तावना; द्विवेदी अभिनन्दन ग्रंथ नागरी प्रचारिणी सभा काशी, वि.सं. 1990 ।
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