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का स्वरूप बहुत भव्य एवं संतुलित है पाश्वनाथ मंदिर126 आकार में बड़ा है। यह सान्धार अथवा प्रदक्षिणापथ से युक्त मंदिर है। इसका भी बहुलांश में जीर्णोद्वार किया गया है; किन्तु इसका प्राचीन स्वरूप अभी भी सुरक्षित है इसमें सामने की ओर अर्धमण्डप, मण्डप, अन्तराल कथा, गर्भगृह, प्रदक्षिणापथ, जालीदार खिड़कियाँ एवं गर्भगृह पीछे एक लघुकथन आदि अंगों की योजना मिलती है। यह मंदिर मूर्ति शिल्प के लिए विख्यात है। इसमें ब्राह्मण देवी देवताओं जैसे सरस्वती, गणेश शिव, ब्राह्मा, विष्णु आदि की सुन्दर आकृतियाँ वाह्य दीवार के चारों और127 क्षैतिज पट्टियों में बनाई गई हैं। पाश्र्वनाथ की मूर्ति को यदि हटा दिया जाय तो इस मंदिर में तथा यहाँ स्थित ब्राह्मण सम्प्रदाय के अन्य मंदिरों में कोई मिलता नहीं दिखाई देती है। इससे समाज में व्याप्त धार्मिक सहिष्णुता (विशेषकर जैन एवं ब्राह्मण
सम्प्रदायों के बीच) का परिचय मिलता है। राजस्थान में अनेक जैन मंदिरों का निर्माण किया गया। इनमें 11 वीं शताब्दी के जैन मंदिर समूह बहुत प्रसिद्ध हैं। ये मुजरात के बनारु कांठा जिले में कुमरियाजी128 में स्थित हैं। सभी मंदिर संगमर्मर से बने हैं। इनमें पञ्चरथ गर्भगृह, मण्डप, स्तम्भयुक्त अर्धमण्डप, प्रार्थना कक्ष, पार्श्ववर्ती छोटे मंदिर, अनेकाडंक शिखर
आदि विशेषतायें प्राप्त होती हैं। मंदिर अपनी वितान (False ceiling) सज्जा के लिए प्रसिद्ध हैं। शैलीकी दृष्टि से इन मंदिरों को राजस्थानी सोलंकी शैली का माना जा सकता है इस शैली का चरमोत्कर्ष आबू पहाड़ी के जैन समुदाय के दिलवाड़ा समूह!29 में दिखाई देता है इनमें 1031 तथा 1230 ई. के विमल वसही130 एवं लूना वसाही131 मंदिर विशेषरूप से उल्लेखनिय हैं। प्रत्येक में गर्मगृह, पावकक्ष, मण्डप, स्तम्भ युक्त मण्डप, प्रार्थनाकक्ष आदि अंग मिलते हैं। संगमरमर से बने दोनों मंदिर अपनी वितान सज्जा के लिए विख्यात हैं। इन मंदिरों की मूर्ति सज्जा ब्राह्मण मंदिरों के समान हैं। वस्तुत: पूर्वमध्य कालीन मंदिर स्थापत्य में सभी सम्प्रदायों ने तत्कालीन विख्यात स्थापतियों (Architects) का सहयोग लिक था। इनमें से कुछ के नाम भी मंदिरों में अंकित मिलते हैं। गुजरात में स्थित बहुसंख्यक जैन मंदिरों को मुस्लिम आक्रान्तओं ने नष्ट कर डाला था।132 किन्तु इन पुरातात्विक साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि तत्कालीन
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