SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूचक है राष्ट्रकूटों ने एलौरा नामक स्थान पर ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन तीनों सम्प्रदायों से सम्बन्धित गुहा-मंदिरों का निर्माण करवाया था। 800 ई. के लगभग यहाँ पर पाँच जैन गुहा मंदिर बनवाये गये जिनमें तीन प्रमुख हैं120 पुरातत्व विभाग की ओर से इनको 30-34 तक की संख्यायें प्रदान की गई हैं। इनमें से छोटा कैलाश (सं-30) मंदिर21 चट्टान तराश कर बनाया गया सुन्दर एकाश्मक (monolittic) मंदिर भी। स्वरूप संरचना की दृष्ट से यह एलौरा के भव्य ब्राह्मण सम्प्रदाय के कैलाश मंदिर की लघु अनुकृति प्रतीत होता है इसी के समीप स्थित इंद्रसभा (सं. 32) तथा जगन्नाथ सभा (सं. 33) दुमंजिले एकाश्मक मंदिर हैं ।122 इनके चतुर्दिक् द्रविड़ शैली के शिखर मंदिरों की लघु प्रतिकृतियाँ तथा प्रांगण में कीर्तिध्वजस्तम्भ तराशे गए हैं सम्पूर्ण संरचना में ब्राह्मण सम्प्रदाय के मंदिर स्थापत्य का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है जो इस तथ्य का सूचक है कि समाज में दोनों समुदायों के मध्य सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध विद्यमान थे। तमिलनाडु कर्नाटक एवं आंध्रप्रदेश के छोटे आकार प्रकार वाले अनेक जैन मंदिर स्थित हैं। 10वीं शताब्दी के लगभग कर्नाटक में सोमनाथपुर हेलेबिड बेल गोला 123 नामक स्थानों पर अनेक जैन मंदिरों एवं विशालकाय तीर्थंकर मूर्तियों का निर्माण किया गया। उत्तरभारत में चंदेलों के नेतृत्व में खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया। इनमें से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं। अवशिष्ट मंदिरों में 5-6 मंदिर जैन सम्प्रदाय के हैं। इनमें घण्टई मंदिर124 का स्तम्भ युक्त मण्डप मात्र अवशिष्ट बचा है। शान्तिनाथ मंदिर125 का इतनी बार जीर्णोद्धार एवं पुनःनिर्माण किया गया है कि उसका प्राचीन स्वरूप पूर्णतया नष्ट हो चुका है अधुना वहां पर जैन धर्म का विशाल मंदिर है जिसमें प्राचीन मूर्तियों एवं मंदिर के विविध अंगों का प्रयोग किया गया है। खजुराहों के मंदिरों के सर्वाधिक सुरक्षित आदि नाथ तथा पाश्वनाथ मंदिर हैं। आदिनाथ मंदिर आकार में छोटा है इसमें वर्गाकार गर्भ गृह, सामने की तरफ छोटा मण्डप तथा अर्धमण्डप विद्यमान ही इसकी बाह्य दीवार पर सुंदर मूर्ति शिल्प की तीन क्षैतिज पट्टियाँ प्राप्त होती हैं। मंदिर का शिखर शुद्ध नागर शिखर है जिसे लतिन शिखर कहा जाता है क्योंकि इसके चतुर्दिक् शिखर की लघु आकृतियाँ नहीं बनाई गई हैं। शिखर ( 193)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy