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________________ ऊंचे भवनों के लिए तुंगभवन", तुंग- अट्टालक” तुग- शिखर एवं तुंग" शब्दों का प्रयोग हुआ ह । सम्भवत: तुंग शब्द भवन के ऊंचे कंगूरों के लिए प्रयुक्त होता था । विनीता नगरी के भवन-शिखर कृष्णमणियों से बनाये गये थे जो मेघसमूह सदृश थे (1) समवसरण की रचना में रत्नों के शिखर बनाये गये थे 1 61, प्राचनी स्थापत्य में चौसर भवनों के स्थान पर शिखरयुक्त भवनों के बनाने का अधिक प्रचलन था । भवन के प्रमुख द्वार पर तोरण बनाये जाते थें । विनीता नगरी के भवनों के तोरण मणियों से 162 तथा समवसरण के तोरण स्वर्ग से बनाये गये थे 163 कुवलयचन्द्र को देखने के लिए नगर की कुल बालिकाएं भवन के विभिन्न स्थानों पर बैठीं थीं 164 जहाँ से राजमार्ग में जाता कुमार दिखायी पड़ता था । साहित्यक दृष्टि से कुवलयमालाकहा का यह वर्णन परम्परागत है । किन्तु स्थापत्य की दृष्टि से इसमें भवन के कई मार्गो का उल्लेख है । यथा- कोई युवती रक्षामुख पर कोई द्वार देश पर कोई ग्वाक्ष पर, कोई गलाएँ पर (घर के उपरीतल पर) कोई चौपाल में, कोई राजांगण में, कोई दरवाजे की देलही पर कोई चौपाल में, कोई राजांगण में, कोई दरवाजे की देलही पर कोई वेदिका पर कोई कपोतपाली पर, कोई हर्म्यतल पर कोई भवन शिखर पर तथा कोई युवती ध्वाजाग्राभाग पर स्थित थी 16 इनमें से अधिकांश की पहिचान प्राचीन साहित्यिक उल्लेखों एवं पुरातत्व की समाग्री के अध्ययन से की जा सकती है / उद्योतन ने इन प्रसंगों में गवाक्ष का उल्लेख किया है। गवाक्ष से कुमार को देखती हुई स्त्रियाँ 7 तोसल राजकुमार ने महानगर श्रेष्ठि के धवलगृह के जालगवाक्षविविर के से मेघों के विविर से निकले हुए चन्द्र सदृश किसी बालिका के मुख कमल को देखा सुवर्ण देवी महोहर जीव-दर्शन करने के लिए जालगवाक्ष पर आसन और शैया रखी गयी-ठवे ( 188 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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