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संदर्भ और टिप्पणियाँ
1. भगवद्गीता अध्याय 17 श्लोक 3,41 2. यक्षों पर द्रष्टव्य कुमार स्वामा-यक्ष 2 भाग : 3. ओरिजन्स ऑव बुद्धिज्म, पृ. 318-19 । 4. एस. बी. ई. जि. 22, भूमिका, तु. मैक्समूलर हर्बर्ट पृ. ३५१ बूलर, बौधायन-धर्मसूत्र (एस. बी. ई. में अनु.)
लेक्चर्स। 5. जैकोबी : जैन सूत्रास (सेक्रेड बुक्स आफ द ईस्ट) 6. तत्रैव, पृ. 122, टिप्पणी। 7. हापकिन्स : रिलीजन्स ऑव इण्डिया पृ. 283 । 8. निगण्ठों पर द्रष्टव्य ओरिजिन्स आव बुद्धिज्म, प्र. 353-68: कैत्रिज, हिस्टरी जि. 1: शापन्तियर, उत्तराध्ययन,
भूमिका; याकोबी, एस. बी. ई. जि. 22 और 45. भूमिका, जैन अाउट लाइन्य आव जैनिज्म ग्लाजेनाप, दि डाक्ट्रिन ऑव बुद्धिज्म, पृ. 567-73; विन्टनत्स, हिस्ट
य न नट-चरजिल्द 25.424 प्रा.। 9. वासुदेव हिण्डी (प्र. ख) के अनुसार केवल पाँच तित्थयार विदेह, भरह और इरावया मे अवसर्पिणी औ
उत्सर्पिणी के दशांश में भरह और इरवय में चौबीस और विदेह में चार और चौतीस । 10. भगवद् गीता अ. 4 श्लोक 7 और 8) 11. समराइच्चकहा, पृ. 160 12. भगवद्गीता, अ. 3 श्लोक 27, 281 13. वासुदेव हिण्डी (प्र. ख), 185 । 14. तत्रैव, 184-महान शब्द की व्युत्पत्ति 'मा. 'हन' से हुई जिसका अर्थ है हिमा मत करो 'मा' नहीं,
हन-हिंसा। 15. तत्रैव, 184। 16. तत्रैव, 24 । 17. तत्रैव, 4। 18. तत्रैव, 3261 19. तत्रैव, 12। 20. तत्रैव, 294-97-कहानी हिंसा, असत्य भाषण, एक दूसरे की पत्नी या पति की इच्छा करना और किसी
दान को अनुचित ढंग से स्वीकार करना आदि के दष्परिणामों को बतलाती है।
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