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________________ पाया जाता है। वहीं अनुमान होता है। धूम अग्नि के बिना नहीं होता, इसलिये धृम में अग्नि का अनुमान होता है; पर अग्नि बिना धूम के भी होती है. इसलिये अग्नि से धूम का अनुमान नहीं होता। जिसके द्वारा अनुमान करते हैं उसको लिंगी कहते है। इस प्रकार धृन लिङ्गी है, और अग्नि लिङ्गी। लिङ्गी वह होता है जो व्यापक हो। जहाँ धूम है वहाँ, अग्नि अवश्य है, धूम में अग्नि की व्यापकता है, ऐसा होने से ही अनुमान हो सकता है। यदि विना अग्नि के धूम होता तो उससे अग्नि का अनुमान न होता। जैसे अग्नि विना धूम के भी होती है अतएवं अग्नि से धूम अनुमान नहीं हो सकता। इसलिये जहाँ व्याप्ति है वहीं अनुमान होता है। सम-व्याप्ति हो चाहे विषम-व्याप्ति हो। सम व्याप्ति, जैसे गन्ध और प्रथिवीत्व की है। जहाँ गन्ध व गन्ध है वहीं पृथिवीत्व है और जहाँ पृथ्वीत्व है वहीं गन्ध है ! और विषम-व्याप्ति, जैसे अग्नि और धूमकी है; क्यों कि जहाँ धूम है वहीं अग्नि में वह नव- है. पर जहाँ अग्नि है वहाँ धूम भी हो यह नियम नहीं है। योग-दर्शन:-जैन कथा-साहित्य में योग-दर्शन का उल्लेख प्राप्त होता है-'आत्मा सर्वगत है, जिसे प्रकृति नही बाँध सकती तथा योगाभ्यास से मुक्ति पाकर व्यक्ति निरंजन होता है। 445 इस सिद्धान्त को मानने वाले आचार्य का नाम कुवलयमाला में नही दिया है। विचारधारा के आधार पर प्रतीत होता है कि इसका सम्बन्ध भी योग से प्रभावित दर्शन से रहा होगा, जो सांख्य की ही एक शाखा है। त्रिदण्डियों के मत से कुछ भिन्नता होने के कारण ये अपने को योगाम्यासी कहते रहे होंगे। पाँच यम पाँच नियम ये दस परिव्राजक धर्म सांख्य दर्शन के साधु भी मानते तथा इसका उपदेश देते थे। राजा दढ़वर्मन ने इस मत के आचार्य का धर्म इसलिए स्वीकार नहीं किया क्यों कि उसे सर्वगत आत्मा होने पर योगाम्यास विपरित प्रतीत होता है।446 योग के आदि आचार्य हिरण्यगर्भ हैं। हिरण्यगर्भ सूत्रों के आधार पर (जो इस समय लुप्त है) पतंजलि योगदर्शन का निर्माण किया है। 1157 ।
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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