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चेतनतत्व का शुद्ध स्वरूप
तदव्यक्तमाह हि ।433
'मूर्त-अमूर्त से परे ब्रह्म का अव्यक्त शुद्धस्वरूप है।' जैसा की श्रुति कहती है
शुद्धमपापविद्धम् ।434
'वह शुद्ध और पाप से न बींधा हुआ है'
शुद्ध चेतन-तत्व ज्ञान वाला नहीं है, किन्तु ज्ञानस्वरूप है
सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म 1435
'(शुद्ध) ब्रह्म, सत्य ज्ञान और अनन्त है।' तच्छुभ्रं ज्योतिषां ज्योति: 1436 'वह शुभ्र ज्योतियों का ज्योति है।'
ब्रह्म का शुद्ध स्वरूप प्राय: नेति-नेति निषेधमुख शब्दों से वर्णन किया गया है, क्योंकि उसका स्वरूप क्या है, यह बात तो आत्मानुभव से ही जानी जा सकती है, उपदेश केवल यही हो सकता है कि ज्ञात वस्तुओं से उसका पर होना ऊँचा दिया जाय, जैसा कि महर्षि याज्ञवल्क्य देवी गार्गी को उपेदश किया है
न्याय और वैशेषिक दर्शन:-विजय पुरी के धार्मिक मठ में 'द्रव्य गुण कर्म, सामान्य विशेष, समवाय पर्दार्थो के स्वरूप निरूपण में अवस्थित भिन्न गुण एवं अवयवों का निरूपण करने वाला वैशेषिक दर्शन पढाया जा रहा था।437
उपर्युक्त सन्दर्भ में इस दर्शन के सातवें ‘अभाव' पदार्थ का उल्लेख न करने से यह कल्पना की जा सकती है कि कणादप्रणीत ‘वैशेषिक सूत्र इस समय पाठ्य ग्रन्थ रहा होगा।
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