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________________ सरागी देव के रूप में उल्लेख किया है ।146 स्वरूप एवं कार्यों के आधार पर इन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है (1) सहयोगी देवता-किन्नर, किंपुरूष, गन्धर्व, नाग, नागेन्द्र, महोरग, यक्ष, लोकपाल147 एवं विद्याधर ।148 (2) उत्पाती देवता-भूत, पिशाच, राक्षस, वेताल,149 महाडाकिनी250 जोगिनी,151 कन्या पिशाचिनी152 प्राचीन भारतीय साहित्य में इनके सम्बनध में प्रचुर उल्लेख प्राप्त होते हैं। हिन्दू पौराणिक परम्परा में उक्त उत्पाती देवताओं को शंकर के अनुचरों के रूप में स्वीकार कर लिया गया था। वे इनके अधिपति माने जाते थे। 153 कुवलयमाला में इन सब देवताओं के विभिन्न कार्यों का भी उल्लेख हुआ है ।किंपुरूष का उल्लेख हमेशा किन्नरों के साथ ही हुआ है ।154 इनका भी पूरा शरीर मनुष्य का नहीं रहा होगा ।गन्धर्वे का सामान्य उल्लेख कुवलयमाला में है ।155 जाति एवं विद्या को भी गन्धर्व कहा जाता था। जैन सूत्रों में गन्धर्व देश का भी उल्लेख है। उनके निवासियों की विवाह विधि को बाद में गन्धर्व-विवाह कहा जाने लगा होगा। पुराणों में इनकी उत्पत्ति एवं भेद-प्रभेदों का भी वर्णन उपलब्ध है। वे देव यानि में माने जाते थे। उनकी पूजा होती थी। इन्द्र एवं सूर्य के वे अनुचर थे।157 गन्धर्वो की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कहा गया है कि ये ब्रह्मा की आज्ञा से यक्ष द्वारा उत्पन्न किये गए थे। ब्रह्मा का तेज (गा) पान करने (ध्यायति) के कारण ही इन्हें गन्धर्व कहा जाता है। हेमकूट एवं सुमेरुगिरि इनका निवास स्थान माना जाता है ।158 नाग, नागेन्द्र, महोरगः-नाग एवं महोरग को बलि देकर सन्तान प्राप्ति की कामना कुवलयमाला में की गई है। यह एक प्राचीन परम्परा थी। ज्ञाता धर्म कथा 159 में भी बन्ध्या स्त्रियाँ इन्द्र, स्कन्द, नाग, यक्ष आदि की पूजा किया करती थीं। जैन परम्परा में राजा भगीरथ ( 113)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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