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________________ बोझ लादना, किसी को भोजन पानी में बाधा डालना, सभा में किसी की निन्दा करना या किसी की गुप्त बात को प्रकट करना, अपनी पत्नी की बात दूसरों से कहना, अथवा किसी को असत्य उपदेश देना, जाली लेख लिखना, अथवा चोरी से लायी हुई वस्तु खरीदना या चोरों से किसी का धन चुरवा लेना, राज्य के नियमों को भग करना, नकली तराजू बाट रखना, न्यूनाधिक या इस प्रकार के अन्यकार्य एवं पदार्थ जो संसार में भ्रमण के निमित्ति है। श्रावक के पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत तथा चार शिक्षाव्रत इन सभी के पाँच-पाँच अतिचार हैं। स्थूल अहिंसा अथवा स्थूल प्राणातिपात-विरमण के पाँच-पाँच मुख्य अतिचार हैं।87 बंध, बध छविच्छेद (किसी भी प्राणी को अंशोपांग काटना), अतिभार तथा अन्न पान निरोध, स्थूल मृषावाद विरमण के अन्तर्गत-सहसा अभ्याख्यान, रहस्य-अभ्याख्यान, स्वदार अथवा स्वपति-मंत्रभेद, मृषा उपदेश तथा कूटलेखकरण (झूठा लेख तथा लेखा-जोखा लिखना-लिखवाना), स्थूल अदत्तादान विरमण के अन्तर्गत स्तेनाहत (चोरी का माल लेना), तस्कर प्रयोग, राज्यादि विरुद्ध कर्म, कूट तौल-कूट माप तथा तत्प्रतिरुपक व्यवहार (वस्तुओं में मिलावट करना), स्वदार संतोष के अन्तर्गत-इत्वारिक परिगृहीता-गमन (इत्वर का अर्थ अल्पकाल से लगाया गया है अर्थात अल्पकाल के लिए स्वीकार की हुयी स्त्री के काम भोगों का सेवन करन), अपरिगृहीता गमन (अपने लिए अस्वीकृत स्त्री के साथ काम भोग का सेवन), अनंग क्रीड़ा, पर विवाह करण तथा काम भोग की तीब्राभिलाषा, इच्छापरिमाण के अन्तर्गत-क्षेत्रवस्तु परिमाण अतिक्रमण हिरण्य-सुवर्ण परिमाणा अतिक्रमण, धन-धान्य परिमाण अतिक्रमण, द्विपद, चतुष्पद परिमाण अतिक्रमण तथा कुप्य परिमाण अतिक्रमण आदि अतिचार गिना तथा कुप्य परिमाण अतिक्रमण आदि अतिचार गिनाये गए हैं। इसी प्रकार गुणव्रतों में दिशा परिमाण के अतिचार-ऊर्ध्व दिशा परिमाण अतिक्रमण, अधोदिशा परिमाण अतिक्रमण, तिर्यगदिशा परिमाण अतिक्रमण, क्षेत्रबृद्धि स्मृत्यन्तर्धा (विस्मृति के कारण स्वयं गया हो अथवा कोई वस्तु प्राप्त हुई हो तो उसका भी परित्याग करना), उपभोग परिभोग परिमाण के अन्तर्गत–सचित्ताहार, सचित्त-प्रतिबद्धाहार, अपक्वाहार दुष्पक्वाहार तथा तुच्छोरुचि भक्षण, अनर्थदण्ड विरमण के अन्तर्गत कन्दर्प (विकार वर्धक वचन बोलन्म या सुनना) आदि अतिचार (105)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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