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________________ शुभसूचक वस्त्रों एवं विभिन्न अलंकरणों से उसे अलंकृत किया गया। तत्पश्चात् अपने महल अर्थात् क्षत्रिय कुण्डग्राम से लेकर चैत्य तक शुभ बेला में बहुत बड़े जुलूस के साथ वह भगवान महावीर के पास गया और वहाँ उसने अपने सभी आभरण तथा अलंकार आदि उतार दिए। अपने माता-पिता को विदा करने के पश्चात् राजकुमार जमाली पाँच मुट्ठी बालों में गुच्छे लेकर महावीर के पास गया तथा अपने पाँच सौ अनुयायियों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की 172 इसी प्रकार सिन्धु-सौबीर के राजा73 तथा अन्य गृहस्थ लोग यथा-ऋषभदत्त74 तथा सुदर्शन75 आदि के भी प्रव्रज्या ग्रहण करने का उल्लेख है। जैन परम्परा में व्रतधारी गृहस्थ को श्रावक, उपासक अथवा अणुव्रती कहा जाता था। वे श्रद्धा एवं भक्ति के साथ अपने श्रमण गुरूजनों से निर्ग्रन्थ प्रवचन का श्रवण करते थे।76 अत: उन्हें श्रावक कहा जाता था। श्रद्धापूर्वक अपने गुरूजनों अथवा श्रमणों से निग्रन्थ प्रवचन का श्रवण करने के कारण व्रतधारी जैन गृहस्थ को श्रावक कहते थे। उन्हे श्रमणोपासक भी कहा गया है, क्योंकि वे श्रमणों की उपासना करते थे। उन्हे अणुव्रती, देश विरत, देश संयमी, देश-संयति की भी संज्ञा दी गयी है। गृहस्थी का त्याग न कर घर पर ही रहने के कारण उन्हे सागार-आगारी गृहस्थ तथा गृही आदि नामों से ही जाना जाता था। श्रमण-श्रमणी के आचार-अनुष्ठान की भाँति श्रावक-श्राविका के आचार अनुष्ठान की भी अनिवार्य अपेक्षा होती है। श्रावक धर्म की मित्ति जितनी सदाचार पर प्रतिष्ठित होती है श्रमण धर्म की नीव उतनी ही अधिक दृढ़ होती है।77 श्रावक कुल में उत्पन्न होने से जिन धर्म प्राप्ति में विश्वास किया जाता था। गृहस्थ आश्रम में रहते हुए श्रावक के लिए अणुव्रतों के पालन का विधान था।'9 जैन परम्परा के अनुसार ये अणुव्रत पाँच प्रकार के माने गए हैं, यथा-स्थूल प्राणतिपात विरमण, स्थूल मृषावाद विरमण, स्थूल अदत्ता दान विरमण, स्वदार संतोष तथा इच्छा परिणाम ।80 श्रावकों के आचार का प्रतिपादन सूत्रकृतांग,81 उपासक दशांग 82 आदि आगम ग्रन्थों में बारह व्रतों के आधार ( 103 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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