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. अत्याचारी दण्ड विधान ५-यदि कोई विधवा स्त्री कुकर्मवश गर्भवती हो जाय और उसे दूपित करने वाला व्यक्ति लोभ देकर उस स्त्री से किसी दूसरे गरीव भाई का नाम लिवा दे तो वह विचारा निर्दोप गरीब धर्म और जाति से पतित कर दिया जाता है।
इसी तरह से और भी अनेक दण्ड की विडम्बनायें हैं जिनके बल पर सैकड़ों कुटुम्ब जाति और धर्म से जुदे कर दिये जाते हैं । उसमें भी मजा तो यह है कि उन धर्म और जाति च्युतों का शुद्धि विधान बड़ा ही विचित्र है। वहां तो 'कुत्ता की छूत विलया को' लगाई जाती है। जैसे एक जाति च्युत व्यक्ति हीरालाल किसी पन्नालाल के विवाह में चुपचाप ही मांडवा के नीचे बैठकर सव के साथ भोजन कर आया और पीछे से इसका इस प्रकार से भोजन करना मालूम होगया तो वह हीरालाल शुद्ध हो जायगा, उस के सब पाप धुल जायंगे और वह मन्दिर में जाने योग्य तथा जातिमें बैठने योग्य हो जायगा । किन्तु वह पन्नालाल उस दोप का भागी हो जायगा और जो गति कल तक हीरालाल की थी वही आज से पन्नालाल की होने लगेगी! अब पन्नालाल जब धन्नालाल के विवाह में उसी प्रकार से जीम आयगा तो वह शुद्ध हो जायगा
और धन्नालाल जाति च्युत माना जायगा। इस प्रकार से शुद्धि की विचित्र परम्परा चालू रहती है । इसका परिणाम यह होता है। कि प्रभावक, धनिक और रौव दौव वाले श्रीमान् लोग किसी गरीब के यहां जीम कर मूंछों पर ताव देने लगते हैं और वेचारे गरीब कुटुम्ब सदा के लिये धर्म और जाति से हाथ धोकर अपने कर्मों को रोया करते हैं । बन्देलखण्ड में ऐसे जाति च्युत सैकड़ों घर हैं जिन्हें 'विनकया' ' विनैकावार' या 'लुहरीसैन' कहते हैं।
सैकड़ों विनैकया कुटुम्ब तो ऐसे हैं जिनके दादे परदादे कभी किसी ऐले ही परम्परागत दोप से च्युत कर डाले गये थे और उन