________________
३८
जैनधर्म की उदारता or nw morn romm.in. .... .ranvrrrrrrrrrrrrrrrrrr कि उस और समाज का आज तनिक भी ध्यान नहीं है। फिर भी अत्याचारी दण्डविधि तो चालू ही है। वह दण्डविधि इतनी दूषित, अन्याय पूर्ण एवं विचित्र है कि उसे दण्ड विधान की विडम्बना ही कहना चाहिये। बुन्देलखण्ड आदि प्रान्तों का दण्ड विधान तो इतना भयंकर एवं क्रूर है कि उसे देख कर हृदय कांप उठता है ! उसके कुछ उदाहरण यहां दिये जाते हैं
१-मन्दिर में काम करते हुये यदि चिड़िया आदि का अंडा पैर के नीचे अचानक आ जावे और दब कर मर जावे तो वह व्यक्ति और उसके घर के आदमी भी जाति से वन्द कर दिये जाते हैं और उनको मन्दिर में भी नहीं आन दिया जाता !
२-एक बैल गाड़ी में १० जैन स्त्री पुरुप बैठ कर जा रहे हों और उसके नीचे कोई कुत्ता विल्ली अकस्मात् श्राकर दव मरे या गाड़ी हांकने वाले के प्रमाद से दब कर मर जाय तो गाड़ी में बैठे हुये सभी व्यक्ति जैनधर्म और जाति से च्युत कर दिये जाते हैं। फिर उन्हें विवाह शादियों में नहीं बुलाया जाता है. उनके साथ रोटी बेटी व्यवहार बन्द कर दिया जाता है और वे देवदर्शन तथा पूजा आदि के अधिकारी नहीं रहते हैं ! - ३-यदि किसी के मकान या दरवाजे पर कोई मुसलमान द्वप वरा अंडे डाल जावे और वे मरे हुये पाये जायें तोवेचारा वह जैन कुटुम्ब जाति और धर्म से बंद कर दिया जाता है।
४-यदि किसी का नाम लेकर कोई स्त्री पुरुप क्रोधावेश में बाकर कुंये में गिर पड़े या विष खा ले अथवो फांसी लगाकर मर जाय तो वह लांछित माना गया व्यक्ति सकुटुम्ब जाति वहिष्कृत किया जाता है और मन्दिर का फाटक भी सदा के लिए बन्द कर दिया जाता है।