________________
तो वीतराग आनंद घन हम को भी अब कीजे ॥मुज० १॥ अधम उधारन शिव सुख कारण समयनि मांहिं भजीजे ॥मुज० ॥२॥ मानिक चरण शरण गहि लीनो अब निवल पद दोजे ।मुज०३॥
१९८ पद-होरी दीपचंदो ॥ , मन मोहो जिनचंद को देखि झलकनित लगी रहत दरशन की ललक॥टेका नासि काग्र दिठि धरत ध्यान बर। भविक मोद हित वर विराग कर ॥ निरविकार निरटुंद अनीपम । उछलत शांति सुधा की छलक ॥ मन०१॥ चिर भ्रम तम निवड़ विनाश करत । भव जिनको भवानप छिन में हरत ॥ स्वपर भेद विज्ञान करत । आज म्व
गई हृदयद्रगनि की पलक ॥मन०२॥पा. यराह अवरोध रहित बरगुण अनंत भगवंत
सुखाकर । मानिक चित चकोर चाहतनित।