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वत । परम शांति मुद्रा के निरखत-निज आनंद झरलाये ॥ आज० २॥ मोह सुभट जग वश करि राखा-ताका बल अब तोड़ जु नाखा । भव भव संचित अशुभ कर्म जे सो अब तुरत पलाये ॥ आज०३॥ जाको इन्द्र चन्द्र शत बंदत सेवत-मुनि गण पाप निकंदित। मानिकनित दरशन चित चाहत हरखि हरखि गुण गाये ॥ आज०४॥
११७ पद-राग पिल्लू ठुमरी दादरे में एजी म्हाने प्यारी लगेछविथारी ॥टेक॥ नाशा अग्र द्रष्टि को धारी बर विरागता कारी ॥ प्यारी०१॥ अनुभव रस झलकत मुख पुलकत सुर नर मुनि मनहारी ॥प्यारी०२॥ अनुपम शांति छवी पर मानिक कोटि मदन परवारी ॥ प्यारी०॥३॥
११८ पद-राग पिल्लू ठुमरी दादरे में। ' एजी मुजरो हमारो लीजे ॥टेक॥तु म