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( ६ ) नित उदय रहोत्रिभुवन की मलक मन०३ ॥
१२० पद-राग पिला ॥
"नादार गजरे वारी । जिनराज शरण में थारी। महाराजशरण में थारी । म्हाने तारो जग भरतारो जी ॥ टेक ॥ की व्याहन की तय्यारी। शित्र क्षत्र फिरत त्रय भारी । संग जादो कृष्ण मुरारी जी ॥ जिन०१॥ इन्द्रादिक बहु असवारी । जहां नाचे सुरासुर नारी। गुण गावति हैं करि तारी जी ॥जिन०२॥ श्रीनेसीश्वर छवि भारो। जापे कोटि म. दन परवारी । को कवि बरणत बुधि हारी जी॥ जिन०३॥ कृप उग्रसेन घर नारी गावें मंगल हित गारी । हर्षित अंग अंग अपारी जी ॥ जिन०४॥ पशुवनि की सु नत पुकारी। प्रभु करुणानिजचित धारी। रथ फेरि दियो गिरनारी जी ॥ जिन०५॥