________________
(८२) मिथ्या तिमिर हृदय दृग छायो हित अ. नहित न विचारो ॥ प्रसु० १ ॥ पर अपनाय सहो दुख भारी अपनो पद न स. म्हारो । प्रभु०२॥ तुमती परम शांति रस सागर नागर नाम तिहारो ॥ प्रमु०३॥ स्वाभाविक धन जाचत सानिक की चिनतो अब धारो ॥ प्रभु०४॥
पद-दादरा ॥ श्री जिनयारी छवी मन भावे हो ॥ श्री जिन टेक ॥ परम शांति मुद्रा के निरखत निज अनुभ्यूति लखावे हो भी० ॥ वीत राग विज्ञान भाव मयदेखत दुरित नसावे हो ॥ नोजिन० २॥ मानिक निज हित हेत छबी लखि हरखि हरखि गुण गाने हो ॥ नी०३॥
पद-रागनी ॥