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________________ मूति तिहारी प्रभु जी प्यारी लागी हो मोडको॥ टेक ॥ जय से लखी छवि शान्ति मनोहर तब से भरम बुधि सारी भागी हो ।। माइ०१।। तुम गुण परमामृन आस्वादत निज अनुभति कला जागी हो ॥ मोइ०२ ।। मानिक दृग चकोर निरखत छविधि सम घर सुखकारी लागे हो ॥ मोइ०३।। १०. पद ग पारंग ॥ मन मोहन छबि थारी हो जिन वर ॥ मन टेक ॥ दर्शज्ञान सुख वीयं अनंनी अंतर विमन तुम्हारी हो । जिन०१॥ तुन नख जोति कोटि रवि लोपे उपमा जगन निहारी हो । भामंडल भव सात दिसत हैं तीन छत्र शिर लानी हो । जिन० २॥ चौ. सठि चमर इन्द्र नित ढोरत दाप अठार टारो हो ।दिव्य ध्वनि अलर विन बिरनी जग जीवन सुखकारी हो ॥जिन:॥ दश
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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