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रत जिन देव ॥ टेक ॥ जैसे रटत चकोर चन्द्रमा तैले मेरी देव ।। तुम०१ ॥मो निज हित के तुम पर कारण नारन तरन स्व. मेव ॥ तम०२॥ मानिक मन बच तन कर जाचत चरण कमाल की सेव। नमा
रद-राग मोरट प्रभु जो माहि भव दधि ते तागे-म्हारी बिननाउर धारो॥टेक॥ गगी द्वेपी देव लेय में दुख पायो अनि भारीप्रभु०१ तुमनो अधन अनेक उबारे पद पायो अविकारा॥ प्रभुषा यह जग जाल हैन स्वारथ को तुम बिन कोई न हमरी ॥ प्रभु०३॥ नारण तरण विस्ट लुनि मानिक लीनो शरण तुम्हारी ॥ प्रभु०४॥
७ पदमाग सौरट ॥ प्रभु जी नेट विमान हमारी ॥ टेक ॥