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(८०) ___९३ पद-राग शिला पिल्लू ॥ तुमी से नू प्रीत लगी-लगी रे मैंनू ॥तु मी० ॥ टेक ।। जग नायक जिन चन्द्र निरखते चिर भ्रम सूल भगी ॥ भगी० १॥ ज्ञान बिराग हेतु बर लखि निज आतम जोति जगी। जगी रे०२॥ तुमरी शांति छबी मानिक के निशि दिन हिय में पगी पगी०३॥
___९४ पद-राग जिला पिल्ल ॥ बसी रे मैंन जिन छबि गनि बसी ॥ वसी रे टेक ॥ निर्विकार निरद्वंद अनोपल ध्यानारूढ़ लसी ॥ लसीरे०१॥ जाके लखत नसत रागादिक सुमति सुतिय हुलसी ॥ लसी०२॥श्री जिनचन्द्र छबी भ्रम तम हर मानिक चित निवसीबसी०३॥
५ पद-ठुमरी बरवैको । तुम दरशन बिन मोइ को कल न प