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(५) सकल नत्व दरशावत यह नो भविजन के मन वशि गईरे ॥ नय० १॥ चिर भ्रम ताप निवारण कारण चन्द्र कलानो दरश गईरे ॥ नय०२ ॥ अघ माह पावन कारण मानिक मेघ घटासी वरनि गईने । नय७३॥
___८५ पदाग देश तथा पिन दृग भरि देख महाराज येजी म्हारोगेम रोम तन हरखी ॥ टेक ॥ दीपा वर्ण रहित सब ज्ञायक तीन भुवन शिरताज ॥ दग०९॥ घिर मिथ्या भ्रम भूलि मिटी मैने निजनिधि पाई आज ॥ दृग० २॥ आजुल ताप मिटी ननछिनही पाया सुख सामाज ॥ग ३॥ मानिक धन्य भाग्य धनि वाउर राज सफल भये काज ॥ दृग०४॥
८६ पद-राग देश मचा पिप ! जीरा नहीं माने माय नी नमिवर त्रिन देखें ॥ टेक । उपन कोदि युन्द ध्याहन