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(७६) आये हर्ष हिये न समाय ॥ जीरा० १॥ पश छुड़ाइ गये गिरि को प्रभु अव तो कछू न वशाय ॥ जीरा०२॥ शिव इमनी सिद्धन को नारी तिन लीने बहकाय ॥ जीरा०३॥ मानिक निज हित लखि रजमति प्रभु के मग लागी धाय ॥ जोरा०४॥
८७ पद-राग देश ॥ म्हाने क्यों न तोरो राज म्हाने क्यों न तारो। अब मैं शरणा लीनो थारो राज ॥ म्हाने० ॥ टेक ॥ तुम तो अधम अनेक उबारे तिन पायो पद अबिकारो राज ॥ म्हाने० १॥ दुष्ट कर्म ने भव भव मांहीं हमरो काज विगारो राज ॥ म्हाने० २॥ तारण तरण बिरद सुनि आयो मौतन नेक निहारो राज ॥ म्हाने० ३॥ मानिक मन वच शरण लयो है कर्म फंदा निरबारी राज म्हाने०४॥