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(६०) हमको तो कछु दोष नहीं ये कौन गुन हमको त्यागी ॥ आली० १॥ आप पगे शिव रमनी सों ये हमतो प्रभु गुनपागी। मानिक तप धरि घर तजि रजमति प्रभु ही के मग लागी ॥ आली०२॥
६६ पद-दादरा __ सतगुरु कीनो पर उपकार-ये जिया दुःखम काल मझार ॥ टेक ॥ गुरुप्रसाद दुर्लभ निज निधि में पाई अति सुखकार ॥सत०९॥ सप्तभंगमयवाणी प्रभु की झोली जो गणधार। ताही क्रमतै वहु मुनिगण श्रुत रचे स्वपर हितकार ॥ सत०२॥ जिन के पठन श्रवण करते मिटि जात भरम अंधियार।स्वपर भेद की वृद्धि होत उपजत अनुभौ सुखसार ॥सत०३॥ केवल श्रुत केवल ह्यां नांहीं मुनिजन गण न लगार ।