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लिये भरमाय || जादों०३ ॥ राजुल मानिक जग असार लखि प्रभु मग लागी धाय॥ जा०१ || ६४ पद-राग दुगने मोष्ट ॥
राजुल जिय में करत विचार-ठाड़ी उग्र सेन दरबार | राजु० टेक ॥ शुभ अरु अशुभ उदय कर्मादिन यह कोनों निरधार ॥ राजु० ९ ॥ छप्पन कीटि जादों युन व्याहन आये नेमिकुमार । पशू निहारि त्रिचारि अथिर जग जाव चढ़े गिरनार॥राजु काकी मात वापकाको सुत काको है परिवार ! काको तन धन काको यौवन झूठा जग व्योहार || राजु ॥ तातें अब प्रभु पान जाय के कोजे तत्व विचार । मानिक ताज दुरमति शुभमति सजि रजमति भजि भरतार ॥ राजु०४ ॥
६५ पद राग देश आली मेरो नाथ भयो वैरागी ॥ टेक ॥