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( ५८ ) रजमति पति शरण विचारो || शिव० १ ॥ ६२ पद- राग कोटी धोम तिताला || जगत त्रय पूज्य लखो जी जिन चंद ॥ टेक ॥ परम शांति मुद्रा के निरखत ही उपजत परमानंद || जगत० १॥ अनंतज्ञान दृग सुख वीरजमय भविक मोद सुखकंद ॥ जग० २ ॥ जासु ज्ञान जोतिष्ना प्रसत्त फटत अनृत तम खंड ॥ जग० ३ ॥ मानिक नैन चकोर लखत चित रटत कटत भवकंद
॥ जग० ४ ॥
६३ पद - राग पिल्लू दादरा ॥ जादों रायरे दगा दियें जाय ॥ टेक ॥ छप्पन कोटि युत व्याहन आये हर्ष हिये न समाय ॥ जादों० ९ ॥ पशू छुड़ाय गये गिरि को प्रभु अब कहा करों उपाय ॥ जा दों० २ ॥ शिव रमनी सिद्धन की नारी ताते